छुआछूत, अस्पृश्यता एक मात्र कारण रहा है, सनातन धर्म के विघटन और वैश्विक बर्बादी का। वैश्विक बर्बादी इसलिये, कि हर संप्रदाय जिसे आप “धर्म” कहते हो, जातियां उपजातियाँ सभी सनातन धर्म से ही उत्पन्न हुये हैं, युगों युगों से चली आ रही, मानसिक अस्पृश्यता की वजह से, जिन्हें लगा कि वो कमज़ोर हैं, रेस में टिके रहने और अपने को दूसरे को श्रेष्ठ साबित करने की होड़ में अपने से श्रेष्ठ को नुकसान पहुँचाने, अपनी पैदावार बढ़ाने, और वैश्विक बर्बादी का कारण बनने के प्रयास में लग गये, एवं परमात्मा द्वारा प्रदत्त ‘शाश्वत सनातन; जो ब्रह्माण्ड का एकमात्र “धर्म” है, क्षीण होता चला गया, और आज आसुरी शक्तियों के बाहुल्य में अंतिम सांसे ले रहा है। लेकिन जब जब धर्म की बड़ी हानि हुई है, अवतार हुये हैं, और शायद फिर कुछ ऐसा ही हो। धर्म स्थापना के प्रयास में यह तो निरंतर अनवरत चलने वाला युद्ध है, जिसे देवासुर संग्राम के नाम से जानते हैं, सदा होता रहा है,और सदा होता रहेगा।
हम सभी अपनी प्रवत्तियों को स्वयं ही आत्मसाक्षात्कार से जान सकते हैं, ये दैवीय हैं, या आसुरी, परीक्षण करें, फिर जारी करें जंग।
आप खुद में बैठी आसुरी शक्तियों से भी लड़ते हैं, और लोक कल्याण में दूसरों की आसुरी शक्तियों से भी, यही युद्ध है।