विचार कीजिये, कि वर्तमान शिक्षा व्यवस्था में हम अपने बच्चों और आने वाली पीढ़ियों को क्या दे रहे हैं, हर व्यक्तित्व खुद में अलग होता है, उज्वल भविष्य की नई और अपार सम्भावनायें लिये, हम कौन होते हैं उसका भविष्य खुद के ढर्रे पे चलाकर निर्धारित करने वाले, परमात्मा उसे कुछ बनने के लिये भेजता है, और हम उसे अपने जैसा ही बना देते हैं, किसी नवीन रचना को जन्म लेने से पहले ही दबा देते हैं। गौर कीजिये, जितने भी सफल वैज्ञानिक, लीडर्स, महापुरुष हुये हैं, वो अपने दिल की आवाज़ पर चले हैं, लाख विरोधों, आलोचनाओं के बावज़ूद हज़ारों असफलताओं के बावज़ूद फिर खड़े हो कर लक्ष्य की ओर निरंतर बढे हैं और सफ़ल हुये हैं, इतिहास का हिस्सा बने हैं।
हमें तय करना होगा, कि हम खुद को और अपनी भावी पीढ़ी को कुछ लोगों द्वारा तय की गई फैक्टरी से निकला आठ से 12 घंटे की नौकरी कर रिटायरमेंट ले कर अंत में चार कंधों पर जाने वाला एक प्रोडक्ट बनाना चाहते हैं, या वो जो हम या वो बनना चाहता है, बनाना चाहते हैं।
हमारा कार्य है, उनकी रुचि और क्षमता को पहचान कर, उन्हें उनके लक्ष्य में सफ़ल होने के लिये सदा प्रेरित करना, अपना सर्वस्व लगा देना, न कि गुलाब के पेड़ को आम का पेड़ बनाने की कोशिश करना
अभी भी देर नहीं हुई है, जब जागें, तभी सवेरा, हो सकता है, आपका नौनिहाल, इंतज़ार में हो, कि मेरे माता पिता कभी तो मेरे दिल की आवाज़ सुनेंगे. यह दिन आज का भी हो सकता है, देखें, हो सकता है, आपके बच्चे में भी शायद कोई आइंस्टीन, तेंदुलकर या धीरू भाई अंबानी छिपा हो।।