क्या आप धार्मिक हैं ? (Are you really religious)

समाज ने अपने अपने संप्रदायों को ही धर्म का नाम दे दिया है, जितने संप्रदाय उतने ही धर्म। वास्तविक धर्म किसी संप्रदाय विशेष का मोहताज़ नहीं, बल्कि परमात्मा, अर्थात अपनी ही आत्मा के परम स्वरूप “परम आत्मा” को प्राप्त करने का मार्ग या कहें आचरण मात्र है। धर्म के नाम पर जो भी विसंगतियाँ समाज में व्याप्त हैं उसका एक ही कारण है, ज्ञान का अभाव।

अतः परम भाव में स्थिति सद्गुरु की शरण सदा ही कल्याणकारी है। धर्म तो वह मार्ग है, जो आपको परमात्मा का साक्षात्कार करा दे, धर्म वह है जो परमात्मा की बनाई प्रकृति, मानवता और लोक कल्याण के उत्थान के लिये हो, न की किसी को कष्ट देने के लिये। जिन्हें हम धर्म कहते हैं, असल में वे संप्रदाय हैं, हिंदू, मुस्लिम, सिख ईसाई, पारसी इत्यादि धर्म नहीं, संप्रदाय हैं। कुरीतियाँ कहीं भी हो सकती हैं, अगर हम जानवरों की क़ुर्बानी का विरोध करते हैं, तो बलि प्रथा का भी होना चाहिये, बाल विवाह गलत है, देवदासी, सती प्रथा ग़लत थी, उसी प्रकार तीन तलाक़ कुप्रथा का अंत भी आवश्यक था, इसमें किसी तर्क की गुंजाईश कहाँ ?

रही बात उस एक धर्म की, तो वह शाश्वत सनातन अर्थात अनादि, जो न कभी पैदा हुआ, न मर सकता है, जिसे हम सनातन धर्म के नाम से ही जानते हैं, यह वह ब्रह्मांडीय कानून है, जिस पर संपूर्ण सृष्टि, अनुशासित रूप में लयबद्ध है। धर्म कभी कट्टरता, घमंड नहीं सिखा सकता, एक बार आप अपने चारों ओर प्रकृति पर ही नज़र दौड़ा कर देख लें, हवा, पानी, सूर्य सब अपने अपने धर्म का पालन कर रहे हैं, बिना किसी भेदभाव के। हिंदू को धूप कम मुस्लिम को ज्यादा, ऐसा नहीं है। क्या आप किसी नवजात शिशु को देख कर उसका संप्रदाय (धर्म कहने की भूल नहीं करनी चाहिये) बता सकते हैं?

नादान मानव, सदियों से, अज्ञानता के भंवर में अकड़ से साथ उलझा हुआ है, पूर्वाग्रह से ग्रसित है, बाहर निकलने को तैयार ही नहीं। जिस दिन यह पूर्वाग्रह के अँधेरे का दामन छोड़ देगा, ज्ञान का प्रकाश उस तक पहुँचने का मार्ग बना लेगा।

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